मंगळवार, २४ जानेवारी, २०१२

छत्रपती संभाजी महाराज आणि बुधभुषणम् !!


सध्या हाती कोणताच मुद्दा नसलेल्या काही हिंदू द्वेषाने हिरव्या निळ्या झालेल्या लोकांनी संभाजी महाराजांच्या 'बुधभुषणम्' या ग्रंथाबद्दल गैरसमज पसरवण्यास सुरुवात केली आहे. ते म्हणतात कि संभाजी महाराजांनी या ग्रंथात गौतम बुद्धाचे चरित्र लिहिले आहे. या ग्रंथाला नाव बुधभुषणम् असे आहे... कारण काय तर म्हणे .... बुवाबाजी, देव आणि पूजापाठ यावर कोरडे ओढणारे गौतम बुद्ध हे पहिले भूमीपुत्र होते. हे लोक असेही म्हणतात कि संभाजी महाराज हे फक्त शंकराचे भक्त होते. शंकर हि पुराणातील देवता नाही. पुराणातील देव बहुजनांचे नाहीत. त्या अज्ञानी किवा जाणून बुजून मराठा समाजाची दिशाभूल करणा-या लोकांसाठी खाली काही श्लोक देत आहे. जे बुधभुषणम् मधील पहिल्या सर्गात आले आहेत.


देवदानवकृतस्तुतिभागं हेलया विजितदापतनागम् ।

भक्तविघ्नहनने धृतरत्नं तं नमामि भवबालकरत्नम् ।।

अर्थ : देव दानवांच्या स्तुतीने संतुष्ट झालेल्या, दुष्ठांचे गर्वहरण करणा-या, भक्तांचे दुःख वर्ण-या, रत्ने धारण करणा-या शिवाच्या पुत्रा गणेशा तुला माझे नमन असो. (हा नमनाचा श्लोक आहे.)

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भृशत् बलान्वयसिंधुसुधाकरः प्रथितकीर्त उदारपराक्रमः ।

अभवत् अर्थकलासु विशारदो जगति शाहनृपः क्षितिवासवः ।।

अर्थ: सिंधू सुधाकारासारखे प्रचंड बलशाली, कीर्तिवान, उदार, पराक्रमी व अर्थकलांमध्ये विशारद असे राजे शहाजी होऊन गेले.

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यस्य अनेक वसुंधरा परिवृट् प्रोत्तुंग चूडामणेः ।

पुत्रत्वं समुपागतः शिव इति ख्यातः पुराणे विभुः ।।

अर्थ : त्या शहाजीराजांना महामुर मुलुखाचे धनी असलेले, लोकांना डोंगरासारखे उत्तुंग म्होरके वाटणारे, पुराणातील पुरुषश्रेष्ठ शिवासारखे राजे शिवाजी हे पुत्रश्रेष्ठ झाले ।

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कलिकालभुजंगम अवलीढं, निखिलं धर्ममवेक्ष्य विक्लव यः ।

जगतः परिरंशतोवतापः स शिवच्छत्रपतिर्जत्येजयः ।।

अर्थ : त्या कलिकालाच्या भुजंगाला पचविलेल्या, अखिल धर्माची हीनावस्था बघून विव्हळ झालेल्या स्वामी म्हनुन जगताचे हरण करण्यासाठिच अवतरलेल्या शिवछत्रपतींचा जयजयकार असो । (शिवाजी महाराजांनी जे राज्य उठवले ते हिंदवी स्वराज्य होते न कि केवळ स्वराज्य हे सांगायला हा श्लोक पुरेसा आहे.)

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तस्यात्मज शंभुरिति प्रसिद्धः समस्तसामंतशिरोवंतसः ।

यः काव्यसाहित्यपुराणगीतकोदण्डविद्यार्णवपारगामी ।।

विविच्य शास्त्राणि पुरातनानामादाय तेभ्यः खलु सोयमर्थम् ।

करोति सद्ग्रंथममुं नृपालः स शंभुवर्मा बुधभूषणाख्यम् ।।

एकत्रित अर्थ : त्या शिवाजी राजांचा - भोवतीच्या सा-या राजेलोकांना शिरोभूषण वाटणारा, काव्य, साहित्य, पुराण, संगीत, धनुर्विद्या यांचे ज्ञान घेतलेला मी पुत्र - शंभूराजे या नावाने प्रसिद्ध आहे. पुरांग्रंथांचे विवेचन करून, त्यातील अर्थपूर्ण भाग निवडून मी शंभूवर्मा हा बुधभुषणम् नावाचा सद्ग्रंथ रचित आहे.

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